Diya Jethwani

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लेखनी कहानी -19-Jun-2023.... तेरा मेरा साथ...(3)

ओम....... ओम...... 


आया माँ....। 

लो आ गया... बोलो क्या हुआ... 
(ओम अपने बैग में फाइल और लेपटॉप रखते हुए बोला..। ) 

आज तु मुझे एक बात बताकर ही घर से जाएगा...। 


अरे माँ.... क्या हुआ... इतना गुस्से में क्यूँ हो..! 

गुस्से में ना होऊं तो क्या करुं.... रात को एक बजे तक कौनसा आफिस खुला होता हैं..। 

अरे माँ.... आपको तो पता हैं ना.... वो नई कंपनी..... 

हां हां पता हैं.... लेकिन खाने पीने का होश हैं की नहीं...। आखिर इतना कमाता किसके लिए हैं...। दो वक्त चैन से बैठकर जब खाना भी नहीं खा सकता हैं तो क्या फायदा इतना सिर खपाने का...। 


अरे माँ... आप तो खांमखा नाराज हो रहीं हैं..। चलो अभी हम साथ में बैठकर नाश्ता खाते हैं...। ओके... अब तो खुश हो जाओ..। 

ओम अपनी माँ की नाराजगी को कम करने के लिए उनके कंधे पर हाथ रखकर उनको साइड हग करते हुए डाइनिंग टेबल पर लेकर गया....। वहां कुर्सी पर अपनी माँ को बिठाकर मानसी को आवाज लगाई...। मानसी उनके घर में काम करने वाली एक शादी शुदा औरत थीं...। उसके पति की एक्सीडेंट में मृत्यु हो जाने के बाद से वो उनके घर के सरवेंट रुम में अपने एक सोलह साल के बेटे के साथ रहतीं थीं...। मानसी के अलावा भी ओम के घर तीन नौकर और एक ड्राइवर भी था...। लेकिन मानसी को ओम सबसे ज्यादा इज्जत देता था... वो उनको ताई कहकर बुलाता था...। 
ओम के आवाज देने के थोड़ी देर बाद ही मानसी नाश्ता लेकर डाइनिंग एरिया में आई...। 

ओर ताई.... आज क्या बनाया हैं नाश्ते में...? 
अरे वाह... सूजी का हलवा...। आपको पता था क्या आज मैं नाश्ता खाने वाला हूँ..! 

अरे बाबा.... जब आप ओर मेमसाब बात कर रहें थे... मैं तभी समझ गई... आज तो आप नाश्ता खाकर ही जाएंगे...। तो मैंने झट से बना दिया था...। 

ओम अपनी माँ की तरफ़ देखकर खिलखिलाकर हंसते हुए बोला :- देखा माँ... अब तो ताई भी समझ गई हैं की हमारी बहस के बाद क्या होता हैं...। 


समझ तो जाएगी ना... तेरा तो हर बार का हैं...। पैसा पैसा पैसा... पगला गया हैं पैसे के पीछे...। तेरे पापा भी ऐसे ही करते थे... उनको भी समझा समझाकर थक गई.... क्या हुआ उनके वक्त... कौनसा पैसा काम आया... बचा पाया उनकी जान ये पैसा...? 

माँ.... आप क्यूँ पुरानी बातें लेकर हर बार बैठ जाती हैं...। ठीक हैं आज से वक्त पर खाना.... वक्त पर सोना.... प्रोमिस...। अब फटाफट मुझे हलवा सर्व करके दो ताई... वरना ठंडा हो जाएगा...। 


सब जानती हूँ.... तेरा ये प्रोमिस कितने दिन तक चलेगा...। जुम्मा जुम्मा दो दिन....उसके बाद फिर से वो ही सब...। फिर से मैं गुस्सा करुंगी.... नाराज होऊंगी....। फिर तु मुझे मस्का लगाएगा...। 

हम्म.... सही कहा आपने मेमसाब....इस रोज रोज की टेंशन से, झिकझिक से छुटने का एक ही रास्ता हैं..। बाबा की किसी अच्छी सी लड़की से शादी करवा दो... वो अपने आप बाबा को घर में कैद कर लेगी..। 

ताई.... बस हां.... अब आप भी मां की तरह शुरू मत हो जाइये..। लाइये मुझे जल्दी से हलवा दिजिए..। मुझे आज एक जरुरी मिटिंग में जाना हैं... ओर हां ताई... परसो मुझे मुम्बई के लिए निकलना हैं तो आप मेरा बैग पैक करके रखियेगा... शायद दो दिन रुकना पड़ सकता हैं तो.... उस हिसाब से पैकिंग कर दिजिएगा...। 

तु सही कहतीं हैं मानसी... इसको बांधने के लिए अब कोई लड़की तो लानी ही पड़ेगी... मैं तो ऊपरवाले से दूआ करती हूँ की इसको ही कोई ऐसी लड़की मिल जाए.... जो मेरी टेंशन खत्म कर दे...। 

आप दोनों का तो ये चलता रहेगा.... मैं चला आफिस.... मेरा टिफिन वहीं भिजवा देना माँ... आज पक्का खाकर ही आऊंगा... मुझे प्रोमिस याद हैं...। 

जूस का गिलास उठाते हुए ओम ने अपनी जेब से फोन निकाला ओर किसी को नंबर लगाकर बात शुरू की... जूस पीते पीते उसने अपनी माँ और मानसी के पांव छुए ओर घर से बाहर अपना बैग लेकर जाने लगा...। 

तभी उसकी माँ ने पीछे से आवाज लगाई... अरे गिलास कहां लिए जा रहा हैं... उसे तो रखकर जा..। हे भगवान ये लड़का भी ना..। 

ओम ये सुनकर पलटकर वापस आया ओर अपनी हड़बड़ाहट छुपाते हुए अपनी माँ से कहा :- पता था मुझे... मैं तो बाहर दे देता काका को... क्या माँ आप भी...। 

हां हां पता हैं.... चल अभी जा... फोन चालु हैं तेरा...। 

ओहह हां.... ओके बाय माँ...। 



आखिर कौन था ये ओम... ? 
ओर निधि और रेणु की जिंदगी आगे क्या होगा... जानते है अगले भाग में..। 



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4 Comments

Punam verma

24-Jun-2023 08:02 AM

Nice

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Gunjan Kamal

24-Jun-2023 12:03 AM

बहुत खूब

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Shnaya

23-Jun-2023 11:05 PM

V nice

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